राजनीतिक संवाददाता द्वारा
पटना: बीजेपी को ये समझ में ही नहीं आ रहा कि उन्हें सत्ता तक पहुंचाने वाला वोट बैंक अचानक उनके हाथ से कैसे निकल गया? कैसे बोचहां में उनकी मजबूत उम्मीदवार के रहते पार्टी की दुर्गति हो गई? अचानक मिले इस झटके ने बीजेपी के कई नेताओं के दिमाग को झकझोर कर रख दिया है। खासतौर पर वो नेता जो कभी बिहार बीजेपी का दिमाग और दिल माने जाते थे। ऐसे ही एक नेता हैं पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी। सुशील मोदी ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए और एक तरह से चेतावनी दे दी कि बिहार में उनके हाथ से निकले या यूं कहें कि भूमिहार और अतिपिछड़ा वोट बैंक की नाराजगी को समय पर दूर नहीं किया गया तो इसके परिणाम 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकते हैं।
सुशील मोदी ने गुरुवार को एक के बाद एक कई ट्वीट किए। पहले आप उन तमाम ट्वीट्स को एक साथ पढ़ लीजिए। सुशील मोदी ने लिखा है कि ‘बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव और विधानसभा की बोचहा सीट पर उपचुनाव में एनडीए के घटक दलों के बीच 2019 जैसा तालमेल क्यों नहीं रहा, इसकी भी समीक्षा होगी। अगले संसदीय और विधानसभा चुनाव में अभी इतना वक्त है कि हम सारी कमजोरियों और शिकायतों को दूर कर सकें। वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में एनडीए के घटक दलों ने पूरे तालमेल से एक-दूसरे को जिताने के लिए मेहनत की थी, जिससे हमारा स्ट्राइक रेट अधिकतम था। गठबंधन के खाते में राज्य की 40 में से 39 सीटें आयी थीं, जबकि राजद सभी सीटें हार गया था।’
इसके बाद सुशील मोदी ने आगे लिखा कि ‘बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए को दस सीटों का नुकसान और फिर विधानसभा के बोचहा उपचुनाव में एनडीए उम्मीदवार का 36 हजार मतों के अंतर से पराजित होना हमारे लिए गहन आत्मचिंतन का विषय है। एनडीए नेतृत्व इसकी समीक्षा करेगा, ताकि सारी कमियां दूर की जा सकें। बोचहा विधानसभा क्षेत्र की एक-एक पंचायत में एनडीए विधायकों-मंत्रियों ने जनता से सम्पर्क किया था। पूरी ताकत लगायी गई थी। सरकार ने भी सभी वर्गों के विकास के लिए काम किये और सबका विश्वास जीतने की कोशिश की। इसके बाद भी एनडीए के मजबूत जनाधार अतिपिछड़ा वर्ग और सवर्ण समाज के एक वर्ग का वोट खिसक जाना अप्रत्याशित था। इसके पीछे क्या नाराजगी थी, इस पर एनडीए अवश्य मंथन करेगा।’ हालांकि इस ट्वीट में सुशील मोदी ने जाति का नाम नहीं लिया लेकिन ये साफ था कि बोचहां में भूमिहार वोट ही निर्णायक होते हैं, ऐसे में वो किसका नाम लेना चाह रहे हैं… ये साफ जाहिर है।
वैसे तो सुशील कुमार मोदी पर नीतीश कुमार के कुछ नेता भी सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगा चुके हैं। ये तब की बात है जब 2012 में बीजेपी बिहार की सत्ता में नीतीश से अलग हो गई थी। उसी वक्त जदयू के एमएलसी संजय सिंह ने सुशील मोदी पर तंज तक कसा था कि ‘सुशील मोदी की एक ही इच्छा, ब्राह्मण मांगे घर-घर भिक्षा’। ऐसे में सुशील मोदी के मन में अचानक सवर्ण और अतिपिछड़ा प्रेम क्यों जाग गया?